मेरी खामोशियों में भी फसाना ढूंढ लेती है,बड़ी शातिर है ये दुनिया बहाना ढूंढ लेती है,हकीकत जिद किए बैठी है चकनाचूर करने को,मगर हर आंख फिर सपना सुहाना ढूंढ लेती है,न चिडि़या की कमाई है, न कारोबार है कोई,वो केवल हौसले से आबोदाना ढूंढ लेती है,समझ पाई न दुनिया मस्लहत मंसूर की अब तक,जो सूली पर भी हंसना मुस्कुराना ढूंढ लेती है,उठाती है जो खतरा हर कदम पर डूब जाने का,वही कोशिश समन्दर में खजाना ढूंढ लेती है,जुनूं मंजिल का, राहों में बचाता है भटकने से,मेरी दीवानगी अपना ठिकाना ढूंढ लेती है।
Friday, September 19, 2008
दिल कि धड़कने शायद यही कहती हैं।
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