Saturday, September 20, 2008

उनको ये शिकायत है.. मैं बेवफ़ाई पे नही लिखता,और मैं सोचता हूँ कि मैं उनकी रुसवाई पे नही लिखता.''ख़ुद अपने से ज़्यादा बुरा, ज़माने में कौन है ??मैं इसलिए औरों की.. बुराई पे नही लिखता.''कुछ तो आदत से मज़बूर हैं और कुछ फ़ितरतों की पसंद है ,ज़ख़्म कितने भी गहरे हों?? मैं उनकी दुहाई पे नही लिखता.''दुनिया का क्या है हर हाल में, इल्ज़ाम लगाती है,वरना क्या बात?? कि मैं कुछ अपनी.. सफ़ाई पे नही लिखता.''शान-ए-अमीरी पे करू कुछ अर्ज़.. मगर एक रुकावट है,मेरे उसूल, मैं गुनाहों की.. कमाई पे नही लिखता.''उसकी ताक़त का नशा.. "मंत्र और कलमे" में बराबर है !!मेरे दोस्तों!! मैं मज़हब की, लड़ाई पे नही लिखता.''समंदर को परखने का मेरा, नज़रिया ही अलग है यारों!!मिज़ाज़ों पे लिखता हूँ मैं उसकी.. गहराई पे नही लिखता.''पराए दर्द को , मैं ग़ज़लों में महसूस करता हूँ ,ये सच है मैं शज़र से फल की, जुदाई पे नही लिखता.''तजुर्बा तेरी मोहब्बत का'.. ना लिखने की वजह बस ये!!क़ि 'शायर' इश्क़ में ख़ुद अपनी, तबाही पे नही लिखता...!!!"

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